NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 3 Kinship, Caste and Class इतिहास पाठ 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग
Question 1:
Explain why patriliny may have been particularly important among elite families.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्वपूर्ण रही होगी?
Answer
पितृवंशिकता, पिता से पुत्र, पौत्र आदि के वंश का पता लगाने की एक प्रणाली है। विशेष रूप से कुलीन परिवारों के बीच इसके महत्वपूर्ण होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
(1) पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के बाद उनके संसाधनों पर (राजाओं के संदर्भ में सिंहासन भी) अधिकार जमा सकते थे।
(2) कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु-बांधव सिंहासन पर अपना अधिकार जमाते थे।
(3) कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त सत्ता का उपभोग करती थीं।
Question 2:
Discuss whether kings in early states were invariably Kshatriyas.
क्या आरंभिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।
Answer
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय राजा हो सकते थे। किंतु अनेक महत्वपूर्ण राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्णों से भी हुई थी। मौर्य वंश जिसने एक विशाल साम्राज्य पर शासन किया, के उद्धभव पर गर्मजोशी से बहस होती रही है। बाद के बौद्ध ग्रंथों में यह इंगित किया गया है कि वे क्षत्रिय थे किंतु ब्राह्मणीय शास्त्र उन्हें ‘निम्न’ कुल का मानते हैं। शुंग और कण्व जो मौर्यों के उत्तराधिकारी थे, ब्राह्मण थे। वस्तुतः राजनीतिक सत्ता का उपभोग हर वह व्यक्ति कर सकता था जो समर्थन और संसाधन जुटा सके । राजत्व क्षत्रिय कुल में जन्म लेने पर शायद ही निर्भर करता था।
Question 3:
Compare and contrast the dharma or norms mentioned in the stories of Drona, Hidimba and Matanga.
द्रोण, हिडिम्बा और मातंग की कथाओं में धर्म के मानदंडों की तुलना कीजिए व उनके अंतर को भी स्पष्ट कीजिए।
Answer
द्रोण:एक बार ब्राह्मण द्रोण के पास, जो कुरु वंश के राजकुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे, एकलव्य नामक वनवासी निषाद (शिकारी समुदाय) आया। द्रोण ने जो धर्म समझते थे, उसे शिष्य के रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया। एकलव्य ने वन में लौट कर मिट्टी से द्रोण की प्रतिमा बनाई तथा उसे अपना गुरु मान कर वह स्वयं ही तीर चलाने का अभ्यास करने लगा। समय के साथ वह तीर चलाने में सिद्धहस्त हो गया। द्रोण ने गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसके दाहिने हाथ का अंगूठा माँग लिया। इस तरह द्रोण ने अर्जुन को दिए वचन को निभाया: कोई भी अर्जुन से बेहतर धनुर्धरी नहीं रहा । हिडिम्बा: एक नरभक्षी राक्षस को पांडवों की मानुष गंध ने विचलित किया और उसने अपनी बहन हिडिम्बा को उन्हें पकड़कर लाने के लिए भेजा। हिडिम्बा भीम को देखकर मोहित हो गईं हिडिम्बा ने अपना परिचय दिया और भीम के प्रति अपने प्रेम से सबको अवगत कराया। वह वुंफती से बोली: हे उत्तम देवी, मैंने मित्र, बांधव और अपने धर्म का भी परित्याग कर दिया है और आपके पुत्र का अपने पति के रूप में चयन किया है। अंततः इस विवाह के लिए सब तैयार हो गए।
समय आने पर हिडिम्बा ने एक राक्षस पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच रखा। तत्पश्चात माँ और पुत्र पांडवों को छोड़कर वन में चले गए किंतु घटोत्कच ने यह प्रण किया कि जब भी पांडवों को उसकी जरुरत होगी वह उपस्थित हो जाएगा। मातंग: एक बार बोधिसत्व ने बनारस नगर के बाहर एक चाण्डाल के पुत्र के रूप में जन्म लिया, उनका नाम मातंग था। उनका विवाह दिथ्थ मांगलिक नामक एक व्यापारी की पुत्री से हुआ । माण्डव्य कुमार नामक उनका एक पुत्र हुआ। बड़े होने पर उसने तीन वेदों का अध्ययन किया तथा प्रत्येक दिन वह 16,000 ब्राह्मणों को भोजन कराता था। एक दिन फटे वस्त्र पहने तथा मिट्टी का भिक्षा पात्र हाथ में लिए मातंग अपने पुत्र के दरवाज़े पर आए और उन्होंने भोजन माँगा | माण्डव्य ने कहा कि वे एक पतित आदमी प्रतीत होते हैं अतः भिक्षा के योग्य नहीं,मातंग ने उत्तर दिया, जिन्हे अपने जन्म पर गर्व है वे अज्ञानी हैं, वे भेंट के पात्र नहीं हैं। माण्डव्य ने क्रोधित होकर अपने सेवकों से मातंग को घर से बाहर निकालने को कहा। मातंग आकाश में जाकर अदृश्य हो गए। जब दिथ्थ मांगलिक को इस प्रसंग के बारे में पता चला तो वह उनसे माफ़ी माँगने के लिए उनवेफ पीछे आई।
Question 4:
In what ways was the Buddhist theory of a social contract different from the Brahmanical view of society derived from the Purusha sukta?
किन मायनों में सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी जो ‘पुरुषसूक्त’ पर आधारित था।
Answer
ऋग्वेद में पुरुषसूक्त का उल्लेख किया गया है, इसमें पुरुष के बलिदान का वर्णन है। ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण के अनुसार समाज को चार श्रेणियों या वर्णों में विभाजित किया गया है : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण ज्ञान और शिक्षा प्रदान करने वाले होते थे, क्षत्रिय युद्ध करने वाले, वैश्य व्यापार करने वाले और शूद्रों को केवल एक व्यवसाय सौंपा गया था, जो था अन्य तीन वर्णों की सेवा का । जबकि, सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधरणा उक्त अवधरणा से अलग है इसमें जन्म के आधार पर सामाजिक स्थिति के निर्धारण के विचार का समर्थन नहीं किया गया है ।
Question 5:
The following is an excerpt from the Mahabharata, in which Yudhisthira, the eldest Pandava, speaks to Sanjaya, a messenger:
Sanjaya, convey my respectful greetings to all the Brahmanas and the chief priest of the house of Dhritarashtra. I bow respectfully to teacher Drona … I hold the feet of our preceptor Kripa … (and) the chief of the Kurus, the great Bhishma. I bow respectfully to the old king (Dhritarashtra). I greet and ask after the health of his son Duryodhana and his younger brother … Also greet all the young Kuru warriors who are our brothers, sons and grandsons … Greet above all him, who is to us like father and mother, the wise Vidura (born of a slave woman) … I bow to the elderly ladies who are known as our mothers. To those who are our wives you say this, “I hope they are well-protected”… Our daughters-in- law born of good families and mothers of children greet on my behalf. Embrace for me those who are our daughters … The beautiful, fragrant, well-dressed courtesans of ours you should also greet. Greet the slave women and their children, greet the aged, the maimed (and) the helpless …
Try and identify the criteria used to make this list – in terms of age, gender, kinship ties. Are there any other criteria? For each category, explain why they are placed in a particular position in the list.
निम्नलिखित अवतरण महाभारत से है जिसमें ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर दूत संजय को संबोधित कर रहे हैं:
संजय धृतराष्ट्र गृह के सभी ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को मेरा विनीत अभिवादन दीजिएगा। मैं गुरु द्रोण के सामने नतमस्तक होता हूँ… मैं कृपाचार्य के चरण स्पर्श करता हूँ… (और) कुरु वंश के प्रधान भीष्म के। मैं वृद्ध राजा (धृतराष्ट्र) को नमन करता हूँ। मैं उनके पुत्र दुर्योधन और उनके अनुजों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता हूँ तथा उनको शुभकामनाएँ देता हूँ … मैं उन सब युवा कुरु योद्धाओं का अभिनंदन करता हूँ जो हमारे भाई, पुत्र और पौत्र हैं… सर्वोपरि मैं उन महामति विदुर को (जिनका जन्म दासी से हुआ है) नमस्कार करता हूँ जो हमारे पिता और माता के सदृश हैं… मैं उन सभी वृद्धा स्त्रियों को प्रणाम करता हूँ जो हमारी माताओं के रूप में जानी जाती हैं। जो हमारी पत्नियाँ हैं उनसे यह कहिएगा कि ‘ मैं आशा करता हूँ कि वे सुरक्षित हैं …. मेरी ओर से उन कुलवधुओं का जो उत्तम परिवारों में जन्मी हैं और बच्चों की माताएँ हैं, अभिनंदन कीजिएगा तथा हमारी पुत्रियों का आलिंगन कीजिएगा… सुंदर, सुगन्धित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनाएँ दीजिएगा । दासियों और उनकी संतानों तथा वृद्ध विकलांग और असहाय जनों को भी मेरी ओर से नमस्कार कीजिएगा….
इस सूची को बनाने के आधरों की पहचान कीजिए उम्र, लिंग, भेद व बंधुत्व के संदर्भ में। क्या कोई अन्य आधार भी है? प्रत्येक श्रेणी के लिए स्पष्ट कीजिए कि सूची में उन्हें एक विशेष स्थान पर क्यों रखा गया है?
Answer
इस सूची को बनाने के लिए उपयोग किए गए मानदंडों से पता चलता है कि अन्य कारक भी थे जिनका उपयोग इस सूची को बनाने के लिए किया गया था। ब्राह्मण, पुरोहित और गुरुओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है । राजा और एक ही उम्र के व्यक्तियों को दूसरे स्थान पर रखा गया है । अगले स्थान पर योद्धाओं को रखा गया है । वृद्ध महिलाएँ, पत्नियाँ, बेटियाँ और बहुएँ अगले क्रम में थीं। दासियों, अनाथों और विकलांगों का भी ध्यान रखा गया और इन्हे क्रम में अंत में रखा गया है ।
Question 6:
This is what a famous historian of Indian literature, Maurice Winternitz, wrote about the Mahabharata: “just because the Mahabharata represents more of an entire literature … and contains so much and so many kinds of things, … (it) gives(s) us an insight into the most profound depths of the soul of the Indian folk.” Discuss.
भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार मॉरिस विंटरनित्ज़ ने महाभारत के बारे में लिखा था कि “चूकि महाभारत संपूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है… बहुत सारी और अनेक प्रकार की चीज़े इसमें निहित हैं … (वह) भारतीयों की आत्मा की अगाध् गहराई को एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।” चर्चा कीजिए।
Answer
ऐसे अनेक ग्रंथ हैं जो हमें भारतीय इतिहास की गहरी जानकारी देते हैं। इनमे से महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जो न केवल भारतीय इतिहासकारों में बल्कि विदेशी इतिहासकारों में भी प्रसिद्ध है। इस महाकाव्य में जीवन के लिए बड़ी संख्या में सीख मौजूद हैं और इसमें भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं की भी जानकारी है। हमें महाभारत से उस समय के लोगों के दृष्टिकोणों और विचारों के बारे में भी पता चलता है। इतिहासकार इस ग्रंथ की विषय-वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों- आख्यान तथा उपदेशात्मक-के अंतर्गत रखते हैं। आख्यान में कहानियों का संग्रह है और उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मानदंडों का चित्रण है।
किंतु यह विभाजन पूरी तरह अपने में एकांकी नहीं है – उपदेशात्मक अंशों में भी कहानियाँ होती हैं और बहुधा आख्यानों में समाज के लिए एक सबक निहित रहता है। अधिकतर इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि महाभारत वस्तुतः एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए। महाभारत में युद्धों, वनों, राजमहलों और बस्तियों का अत्यंत जीवंत चित्रण है।। यह हमें राजनीतिक स्थिति, विवाह के विभिन्न रूपों और विवाह से संबंधित नियमों, समाज में महिलाओं की स्थिति और विरासत के बारे में भी बताता है।
Question 7:
Discuss whether the Mahabharata could have been the work of a single author.
क्या यह संभव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? चर्चा कीजिए।
Answer
महाभारत के लेखक के बारे में कई विचार हैं:
(1) संभवतः मूल कथा के रचयिता भाट सारथी थे जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था। ये क्षत्रिय योद्धाओं के साथ युद्ध-क्षेत्र में जाते थे और उनकी विजय व उपलब्धियों के बारे में कविताएं लिखते थे। इन रचनाओं का प्रेषण मौखिक रूप में हुआ । पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से ब्राह्मणों ने इस कथा परंपरा पर अपना अधिकार कर लिया और इसे लिखा । यह वह काल था जब कुरु और पांचाल जिनके इर्द-गिर्द महाभारत की कथा घूमती है, मात्र सरदारी से राजतंत्र के रूप में उभर रहे थे।
(2) कहानी के कुछ हिस्से संभवतः यह भी दर्शाते है कि पुराने सामाजिक मूल्यों को अक्सर नए मानदंडों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। इस समय विष्णु की पूजा बढ़ रही थी और महत्व प्राप्त कर रही थी, और कृष्ण जो महाकाव्य के एक महत्वपूर्ण नायक थे को विष्णु का रूप बताया जाने लगा ।
(3) ग्रन्थ में प्रारम्भ में 10,000 से कम छंद थे जो धीरे-धीरे बढ़कर लगभग 1,00,000 हो गए। साहित्यिक परंपरा में इस बृहत रचना के रचयिता ऋषि व्यास माने जाते हैं। यदि यह महाकाव्य एक ही लेखक ने लिखा होता तो हम लोगो के दृष्टिकोणों में इस तरह की विविधता नहीं देखते और इसके विचार संभवतः नीरस बन जाते । यदि ऐसा होता तो हम महाकाव्य को लेखक के दृष्टिकोण से देखते और इसकी व्याख्या इस प्रकार करते जिससे ये लेखक के विचारों के साथ मेल खाती ।
Question 8:
How important were gender differences in early societies? Give reasons for your answer.
आरंभिक समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों की विषमताएँ कितनी महत्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।
Answer
वंश और रिश्तेदारी का पता लगाने की दो अवधारणाएँ थीं :
(1) पितृवंशिकता: जिसका अर्थ है वह वंश परंपरा जो पिता से पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्रा आदि से चलती है और,
(2) मातृवंशिकता: इस शब्द का इस्तेमाल हम तब करते हैं जहाँ वंश परंपरा माँ से जुड़ी होती है।
इस समय पितृवंशिकता प्रचलित थी और पितृसत्तात्मक उत्तराधिकार की घोषणा की गई थी कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त ने सत्ता का उपभोग किया। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। स्त्रियाँ इस पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। किंतु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्री-धन (अर्थात् स्त्री का धन) की संज्ञा दी जाती थी। इस संपत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था। किंतु मनुस्मृति में स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक संपत्ति अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह के नियम भी अलग-अलग थे।
Question 9:
Discuss the evidence that suggests that Brahmanical prescriptions about kinship and marriage were not universally followed.
उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था ।
Answer
साक्ष्य जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं किया जाता था परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं जिन्हें हम संबंधी कहते हैं। पारिवारिक रिश्ते नैसर्गिक और रक्त संबंध माने जाते हैं किंतु इन संबंधों की परिभाषा अलग-अलग तरीके से की जाती है। कुछ समाजों में भाई-बहन (चचेरे, मौसेरे आदि) से खून का रिश्ता माना जाता है किंतु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते। आरंभिक समाजों के संदर्भ में इतिहासकारों को विशिष्ट परिवारों के बारे में जानकारी आसानी से मिल जाती है अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। हालाँकि इस प्रथा में विभिन्नता थी कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु बांधव सिंहासन पर अपना अधिकार जमाते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त सत्ता का उपभोग करती थीं। जहाँ पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण थे वहाँ इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही अपेक्षित था। इस प्रथा को बहिरविवाह पद्धति कहते हैं और इसका तात्पर्य यह था कि ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम उम्र की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बहुत सावधनी से नियमित किया जाता था जिससे ‘उचित’ समय और ‘उचित’ व्यक्ति से उनका विवाह किया जा सके । इसका प्रभाव यह हुआ कि कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया। किंतु, सातवाहन शासकों का मामला अलग था। कुछ सातवाहन राजा बहुपत्नी प्रथा (अर्थात् एक से अधिक पत्नी) को मानने वाले थे। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नामों का विश्लेषण इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि विवाह के बाद भी उन्होंने अपने पिता के गोत्र नाम को ही कायम रखा। यह विचार ब्राह्मणवादी सिद्धांतों के विपरीत था।
NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 3 Kinship, Caste and Class इतिहास पाठ 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग