NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions इतिहास पाठ 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ
Question 1:
उदाहरण सहित बताएं कि सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकलते है?
Answer
सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार यह अर्थ निकालते हैं कि अलग-अलग पूजा प्रणालियों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान व सहिष्णुता की भावना। पौराणिक ग्रंथों का संकलन, रचना तथा संरक्षण से ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इतिहासकारों का विचार है कि पूरे महाद्वीप में धार्मिक विचारधाराएँ एक-दूसरे के साथ संवाद की ही परिणाम है। समन्वय की इस प्रक्रिया का सबसे अच्छा उदाहरण आधुनिक उड़ीसा में स्थित ‘पुरी’ में मिलता है। बारहवीं शताब्दी तक आते-आते यहाँ के प्रमुख देवता जगन्नाथ को विष्णु का रूप मान लिया गया था।
Question 2:
आपको क्या लगता है कि उपमहाद्वीप में मस्जिद की वास्तुकला सार्वभौमिक आदर्शों और स्थानीय परंपराओं के संयोजन को दर्शाती है?
Answer
उपमहाद्वीप में मस्जिद की वास्तुकला की विशेषताएं स्थानीय परंपराओं के साथ एक सार्वभौमिक विश्वास के जटिल मिश्रण को दर्शाती हैं। कुछ विशेषताएं सार्वभौमिक हैं जैसे कि मस्जिद का उन्मुखीकरण मक्का की ओर है, जो मिहब (प्रार्थना आला) और मिनबार (पल्पिट) के स्थान पर स्पष्ट है। हालांकि, कई विशेषताएं हैं जो छत और निर्माण सामग्री जैसी विविधताएं दिखाती हैं।
Question 3:
बे शरीया और बा शरीया सूफी परंपराओं के बीच समानताएं और अंतर क्या थे?
Answer
बे शरिया और बा शरिया सफ़ूी परंपरा के बीच एकरूपता
(1) बे शरिया तथा बा शरिया दोनों ही इस्लाम धर्म से संबंधित थे।
(2) बे शरिया तथा बा शरिया दोनों ही इबादत पर अधिक बल देते थे।
(3) दोनों के अनुसार – सर्वोच्च शक्ति केवल एक है – ʻअल्लाहʼ
बे शरिया और बा शरिया सफ़ूी परंपरा में अंतर
(1) बे शरिया इस्लामी कानून (शरिया) का पालन नहीं करते थे। इसके विपरीत बा शरिया इस्लामी कानून (शरिया) का पालन करते थे।
(2) बे शरिया सफ़ूी संत ख़ानकाह (आश्रम) का अपमान (तिरस्कार) करके फ़कीर की जिंदगी व्यतीत करते थे। इसके विपरीत बा शरिया सफ़ूी संत ख़ानकाहों में रहते थे। ख़ानकाहों में पीर अपने शिष्यों (मुरीदों) के साथ रहता था।
Question 4:
उन तरीकों पर चर्चा करें जिनमें अलवार, नयनार और वीरशैव जाति व्यवस्था की आलोचना करते थे।
Answer
अलवार तथा नयनार संतों की रचनाओं को वेद जितना प्रमुख बताया गया है। वीर शैव कर्नाटक से संबंधित थे। वे बासवन्ना के अनुयायी थे। उन्होंने जाति समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया। अलवार और नयनार तमिलनाडु के भक्ति संत थे। कई इतिहासकारों का मानना है कि अलवार, नयनार संतों ने जाति-प्रथा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में भी आवाज़ उठाई। अलवार संतों के मुख्य काव्य संकलन नलयिरादिव्यप्रबन्धाम् का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था। उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धांत को अस्वीकार किया। ब्राह्मण धर्मशास्त्रों के आचारों जैसे – विधवा पुनर्विवाह, वयस्क विवाह को अस्वीकार किया। इन आचारों को वीरशैवों ने मान्यता दी।
Question 5:
कबीर या बाबा गुरु नानक के प्रमुख उपदेशो का वर्णन करें और इन तरीकों को किस प्रकार प्रेषित किया गया।
Answer
कबीर के मुख्य उपदेश
(1) कबीर ने अंधविश्वासों का घोर विरोध किया।
(2) कबीर ने भक्ति भावना का पूर्ण समर्थन किया।
(3) कबीर ने निर्गुण विचारधारा का समर्थन किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन किया।
(4) उनके अनुसार परमात्मा एक है और वही सत्य है। कबीर के अनुसार भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। कभी-कभी बीज लेखन की भाषा का प्रयोग भी किया है। कबीर ने अपने विचारों तथा उपदेशों को काव्य की भाषा में अभिव्यक्त किया जिसे सरलता से समझा जा सकता था।
बाबा गुरूनानक के मुख्य उपदेश:
(1) गुरूनानक देव जी का जन्म पंजाब के ननकाना गाँव में हुआ। उनका जन्म एक व्यापारी परिवार में हुआ।
(2) गुरूनानकदवे जी निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
(3) गुरूनानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया और कहा था कि सबका पिता एक ही है इसलिए सभी से प्रेम करना चाहिए।
(4) ईमानदारी से मेहनत कर उदरपूर्ति करनी चाहिए। सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
(5) गुरूनानक देव ने अपने विचारों तथा उपदेशों को पंजाबी भाषा में अभिव्यक्त किया। वे शब्द अलग-अलग रागों में गाते थे तथा उनका सेवक मरदाना रबाब बजाकर उनका सहयोग करता था।
Question 6:
सूफीवाद के प्रमुख धर्मिक विश्वासों और प्रथाओं पर चर्चा करें।
Answer
सूफीवाद की प्रमुख मान्यताएँ और प्रथाएँ थीं:
(1) सूफी धार्मिक और राजनीतिक संस्थान के रूप में खलीफा के बढ़ते भौतिकवाद के खिलाफ थे।
(2) सूफियों ने धर्मशास्त्रियों द्वारा अपनाई गई कुरान और सुन्ना (पैगंबर की परंपराओं) की व्याख्या करने की हठधर्मिता परिभाषाओं और विद्वानों के तरीकों की आलोचना की।
(3) सूफियों ने ईश्वर के प्रति तीव्र भक्ति और प्रेम के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने पर जोर दिया।
(4) सूफियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कुरान की व्याख्या मांगी।
(5) उन्होंने लोगों को खिलाने के लिए लंगर (एक खुली रसोई) का आयोजन किया। सुबह से लेकर देर रात तक सभी क्षेत्रों के लोग- सैनिक, दास, गायक, व्यापारी, कवि, यात्री, अमीर और गरीब वहाँ आते रहे।
(6) गायन और नृत्य उस परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया जिसे पहले इस्लाम में अनुमोदित नहीं किया गया था।
Question 7:
कैसे और क्यों शासकों ने नयनारों और सूफियों की परंपरा के साथ संबंध स्थापित करने की कोशिश की।
Answer
शासकों ने नयनार तथा सफ़ूी संतों को अनेक प्रकार से संरक्षण दिया है। चिदम्बरम्, तंजावुर तथा गंगैकोडा चोलापुरम् के शिव मंदिर चोल सम्राटों के सहयोग से बनाए गए थे। अपने राजस्व के पद को दैवीय स्वरूप प्रदान करने के लिए चोल शासकों ने नयनार संतो के साथ संबंध बनाने पर बल दिया था दिया बौर ने उनका समर्थन प्राप्त किया। चोल शासकों ने तमिल भाषा के सैव भजनों का गायन मंदिरों में प्रचलित किया। चोल शासकों ने पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ स्थापित करवाई। जब दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई तो उलेमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की माँग को ठुकरा दिया गया था। सुल्तान जानते थे कि उनकी अधिकांश प्रजा गैर-इस्लामी है। ऐसे समय में सुल्तानों ने सफ़ूी संतों का सहारा लिया जो अपनी आध्यात्मिक सत्ता को अल्लाह के रूप में मानते थे। शासक वर्ग इन संतों की लोकप्रियता तथा विद्वता के कारण उनको समर्थन हासिल करना चाहते थे।
Question 8:
उदाहरण के साथ विश्लेषण कीजिए कि भक्ति और सूफी चिंतकों ने अपनी राय व्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं को क्यों अपनाया।
Answer
भक्ति और सफ़ूी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। वे अपने विचारों को और उपदेशों को लोगों तक अपनी भाषाओं में पहुँचाना चाहते थे। वे जनसामान्य तक अपने विचारों का पहुँचाने के लिए स्थानीय भाषा का प्रयोग करते थे। विभिन्न भाषाओं में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के कारण उनकी रचनाओं को वेदों के समान महत्वपूर्ण स्थान मिला। उत्तरभारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख विचारकों ने अपने विचारों को प्रकट करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया और विशेषकर अपने विचारों को जनसामान्य की भाषा में ही प्रकट किया। जैसे कि कबीर ने अपने पदों में ब्रज, अवधी, हिंदी तथा स्थानीय बोलियों के बहुत से शब्दों का प्रयोग किया है। ‘कबीर बीजक’ वाराणसी तथा उत्तरप्रदेश के स्थानों से संबंधित है और ‘कबीर ग्रंथावली’ राजस्थान से संबंधित है। पवित्र ग्रंथ गुरूग्रंथ साहिब में विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों का प्रयोग किया गया है। वे किसी भी भाषा-विशेष को पवित्र नहीं मानते थे। वे सामान्यतः जनसामान्य को शांति प्रदान करना चाहते थे।
Question 9:
इस अध्याय में शामिल किसी भी स्रोत को पढ़ें और उनमें व्यक्त किए गए सामाजिक और धार्मिक विचारों पर चर्चा करें
Answer
(1) चतुर्वेदी (ब्राह्मण चार वेदों में पारंगत) और “बहिष्कृत”:
यह टोंडारादिपोडी द्वारा रचित था जो एक ब्राह्मण था, वह एक अलवार था । उपरोक्त स्रोत से हम कह सकते हैं कि अलवार जाति व्यवस्था और ब्राह्मणों के वर्चस्व के खिलाफ थे या कम से कम इस व्यवस्था को सुधारने का प्रयास किया गया।
(2) शास्त्र या भक्ति :
यह अप्पार द्वारा रचित एक श्लोक है, जो एक नयनार संत है। नयनारों ने दावा किया कि उनकी रचनाएँ वेदों की तरह महत्वपूर्ण थीं।
(3) कराईकल अम्माईयर की कांस्य छवि :
शिव के भक्त, करिककल अम्मैयार ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए अत्यधिक तपस्या का मार्ग अपनाया। उनकी रचनाएँ नयनार परंपरा के भीतर संरक्षित थीं।
(4) शाही उपहार की घोषणा:
यह एक सूफी पाठ का एक अंश है जो शेख निज़ामुद्दीन औलिया की धर्मशाला में कार्यवाही का वर्णन करता है। इस अंश से पता चलता है कि सूफियों ने सांसारिक शक्तियों और कब्जों से दूरी बनाए रखी।
(5) एक प्रभु :
यह कबीर के लिए एक रचना है। इससे पता चलता है कि कबीर ने एक ईश्वर के विचार का प्रचार किया जिसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है।
NCERT Solutions for Class 12 History Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions इतिहास पाठ 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ