NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 7 क्षितिज भाग- 1 हिंदी पाठ 7 – साखियाँ एवं सबद
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साखियाँ के प्रसंग और व्याख्या
- मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
प्रसंग:
यह साखी संत कबीर द्वारा आत्मज्ञान और संतों की संगति की महिमा को दर्शाने के लिए कही गई है। इसमें वह आत्मा के परमात्मा में मिल जाने की स्थिति का वर्णन करते हैं।
व्याख्या:
कबीरदास कहते हैं कि जब हंस (यहाँ हंस आत्मा का प्रतीक है) मानसरोवर (यहाँ मानसरोवर ईश्वर या आत्मज्ञान का प्रतीक है) के सुंदर जल में पहुँचता है, तो वह वहीं पर आनंदपूर्वक खेलने लगता है। अब वह हंस मुक्ताफल (मोती) जैसे पवित्र अनुभवों का सेवन करता है और उसे कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
अर्थात्, जब आत्मा सच्चे संत या ज्ञान के माध्यम से ईश्वर से जुड़ जाती है, तो वह संसार के मोह से मुक्त होकर शांति का अनुभव करती है और फिर कहीं और नहीं भटकती। - प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
प्रसंग:
इस साखी में कबीरदास सच्चे प्रेम की खोज और समाज में उसकी दुर्लभता को उजागर करते हैं। वे बता रहे हैं कि सच्चा प्रेमी — जो ईश्वर से निस्वार्थ प्रेम करता है — संसार में विरला ही मिलता है।
व्याख्या :
कबीरदास कहते हैं कि मैं प्रेमी (ईश्वर से सच्चा प्रेम करने वाला) को ढूंढ़ता फिरता हूँ, लेकिन मुझे कोई भी सच्चा प्रेमी नहीं मिलता। परंतु जब एक सच्चे प्रेमी को दूसरा सच्चा प्रेमी मिल जाता है, तो उनके लिए संसार का सारा विष (कष्ट, दुःख, संघर्ष) भी अमृत (आनंद, संतोष) बन जाता है।
इसका अर्थ है कि जब व्यक्ति सच्चे हृदय से प्रेम करता है (चाहे वह ईश्वर से हो या किसी संत से), तो वह जीवन की सभी कठिनाइयों को सहजता से पार कर लेता है। - हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।
प्रसंग:
इस साखी में कबीरदास ने संसार के दिखावे और बाहरी आकर्षणों से मुक्त होकर ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। उन्होंने साधक के लिए संसार को एक बाधा और भ्रम के रूप में बताया है।
व्याख्या :
कबीरदास कहते हैं कि यदि तुम सच्चे ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हो तो पहले “सहजता” और “दुलीचा” (गृहस्थ जीवन के बंधन, दिखावा, अहंकार) को त्यागना होगा।
वे आगे कहते हैं कि यह संसार एक कुत्ते की तरह है जो हर समय भौंकता रहता है — अर्थात् आलोचना करता है, टोका-टाकी करता है, मार्ग से विचलित करता है। इसलिए साधक को चाहिए कि वह उसकी परवाह किए बिना अपने ज्ञान और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ता रहे। - पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
प्रसंग:
इस साखी में कबीरदास ने बताया है कि किस प्रकार पक्षपात, मतभेद और अपनी-अपनी मान्यताओं के कारण संसार भ्रम में पड़ा हुआ है। वे संतों को निष्पक्षता अपनाकर ईश्वर भक्ति की सलाह देते हैं।
व्याख्या:
कबीरदास कहते हैं कि यह पूरा संसार पक्षपात और भेदभाव की भावना में डूबा हुआ है — जैसे जाति, धर्म, संप्रदाय, अपने-पराए इत्यादि के कारण लोग सच्चे मार्ग से भटक गए हैं।
लेकिन जो व्यक्ति पक्षपात से ऊपर उठकर निष्पक्ष होकर केवल ईश्वर का भजन करता है, वही सच्चा और समझदार संत है।
मतलब यह कि धार्मिक मार्ग पर चलने के लिए हमें भेदभाव और संकीर्ण सोच से मुक्त होना ज़रूरी है। - हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।5।
प्रसंग:
इस साखी में कबीर धार्मिक पाखंड और नाम मात्र की भक्ति पर प्रश्न उठाते हैं। वे बताते हैं कि केवल नाम जपने से मोक्ष नहीं मिलता, जब तक सच्चा भाव और आत्मज्ञान न हो।
व्याख्या:
कबीरदास कहते हैं कि एक व्यक्ति “राम-राम” कहते हुए मर गया (हिंदू), और दूसरा “खुदा-खुदा” कहते हुए मर गया (मुसलमान)। पर कबीर कहते हैं कि असली जीवित वही है जो इन दोनों से ऊपर उठकर सच्चे ज्ञान और भाव से जुड़ता है। केवल नाम लेने से ईश्वर प्राप्त नहीं होता।
यहाँ कबीर यह नहीं कहते कि राम या खुदा गलत हैं, बल्कि वे कहते हैं कि केवल नाम लेने से कुछ नहीं होगा, जब तक हृदय से अनुभव और भक्ति न हो। - काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चुन मैदा भया, बैठी कबीरा जीम।6।
प्रसंग:
इस साखी में कबीर ने यह दिखाया है कि कैसे लोग केवल नाम, रूप, स्थान और भाषा बदलकर उसे ही सच्चा धर्म समझने लगते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर का स्वरूप नामों, भाषाओं, या स्थलों में नहीं, बल्कि भावना और अनुभव में है।
व्याख्या:
कबीर कहते हैं —कभी काबा (इस्लामिक तीर्थ), कभी काशी (हिंदू तीर्थ) हो जाती है। राम को रहीम कहा जाने लगता है।
जैसे – मोटा गेहूं पीस कर मैदा बन गया, और अंत में वही कबीर उसे पका कर खा रहे हैं।
मतलब यह है कि नाम, भाषा, रीति, परंपरा कुछ भी बदल जाए — सत्य एक ही रहता है।
ईश्वर को चाहे राम कहो या रहीम — वह एक ही सत्ता है।
कबीर इस परिवर्तन को सरलता से स्वीकारते हुए कहते हैं कि उन्होंने इन बातों से ऊपर उठकर सत्य का स्वाद चखा है। - उँच्चे कुल का जनमिया, जे करनी उँच्च न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई।7।
प्रसंग:
यह साखी कर्म और चरित्र की श्रेष्ठता पर आधारित है। कबीरदास यहाँ वंश या ऊँची जाति पर गर्व करने वालों को चेतावनी देते हैं कि केवल ऊँचे कुल में जन्म लेना व्यक्ति को श्रेष्ठ नहीं बनाता — श्रेष्ठता उसके कर्म से आती है।
व्याख्या :
कबीरदास कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति ऊँचे कुल (परिवार/जाति) में जन्म भी ले ले, लेकिन उसके कर्म ऊँचे नहीं हैं, तो उसका ऊँचापन व्यर्थ है।
वह आगे उदाहरण देते हैं कि अगर सोने का कलश भी हो, लेकिन उसमें शराब भरी हो, तो वह पूज्य नहीं होता। उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्मा व्यक्ति, अगर बुरे कर्म करे, दूसरों की निंदा करे, तो वह भी सम्मान के योग्य नहीं।
यानी बाहरी शोभा (वंश, रूप, धन) की नहीं, बल्कि आत्मा और आचरण की शुद्धता की आवश्यकता है।
प्रश्न – अभ्यास
साखियाँ
1. ‘मांसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
‘मानसरोवर’ से कवि का आशय हृदय रुपी तालाब से है। जो हमारे मन में स्थित है।
2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर:
सच्चे प्रेम से कवि का तात्पर्य भक्त की ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति से है। एक भक्त की कसौटी उसकी भक्ति है। अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति ही भक्त की सफलता है।
3. तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर:
तीसरे दोहे में कवि ने आत्मज्ञान को महत्व दिया है।
4. इस संसार में सच्चा सत कौन कहलाता है?
उत्तर:
इस संसार में सच्चा सत वही कहलाता है जो सत्य के मार्ग पर चलता है, सच्चाई को अपनाता है, और अपने कर्मों में ईमानदारी और निष्पक्षता रखता है।
5. अंतिम दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
अंतिम दो दोहों में कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-
(1) जो मनुष्य को सत्य और ईश्वर से दूर ले जाती हैं।
(2) उन्होंने जाति, धर्म, और कुल के आधार पर होने वाले भेदभाव, अहंकार, और अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों की आलोचना की है।
6. किसी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? कबीर का क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर:
कबीर का मानना है कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से होती है। कोई व्यक्ति यदि ऊँचे कुल में जन्म लेकर बुरे कर्म करता है तो वह निंदनीय होता है। इसके विपरीत यदि साधारण परिवार में जन्म लेकर कोई व्यक्ति यदि अच्छे कर्म करता है तो समाज में आदरणीय बन जाता है सूर, कबीर, तुलसी और अनेकानेक ऋषि-मुनि साधारण से परिवार में जन्मे पर अपने अच्छे कर्मों से आदरणीय बन गए। इसके विपरीत कंस, दुर्योधन, रावण आदि बुरे कर्मों के कारण निंदनीय हो गए।
7. काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए—
हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुरीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।
उत्तर:
इस साखी में कबीर ने यह बताया है कि ज्ञान प्राप्त करने के बाद सब कुछ सहज और स्पष्ट रूप से समझ में आता है। संसार सगुण रूप है, और इसे सच्चाई के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
सबद
8. मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूंढ़ता फिरता है?
उत्तर:
मनुष्य ईश्वर को मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और विभिन्न धार्मिक स्थानों पर ढूंढ़ता फिरता है। लेकिन कबीर के अनुसार, ईश्वर बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि अपने भीतर की सच्चाई में विद्यमान है।
9. कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर ने मंदिर में है, न मसजिद में; न काबा में है, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्मकांड करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब ऊपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।
10. कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है?
उत्तर:
कबीर का मानना था कि ईश्वर घट-घट में समाया है। वह प्राणी की हर साँस में समाया हुआ है। उसका वास प्राणी के मन में ही है।
11. कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर:
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना आँधी से इसलिए की है क्योंकि ज्ञान का प्रभाव जीवन में बहुत गहरा और व्यापक होता है। जैसे आँधी आते ही सब कुछ बदल देती है, वैसे ही ज्ञान का आगमन भी व्यक्ति के जीवन में गहरा परिवर्तन लाता है। यह व्यक्ति के अज्ञान को मिटाकर उसे सच्चाई की ओर अग्रसर करता है।
12. ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ज्ञान की आँधी का मनुष्य के जीवन पर यह प्रभाव पड़ता है कि उसके सारी शंकाए और अज्ञानता का नाश हो जाता है। वह मोह के सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
13. भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) हित चिंत है थूनी गिरींन्ही, मोह बलिंडा टूटा।
(ख) आँधी पीछे जो जल बुझा, प्रेम हरि जन भींणा।
उत्तर:
(क) भाव: इस पंक्ति में कबीर ने यह कहा है कि जब व्यक्ति का मोह और माया के प्रति लगाव समाप्त हो जाता है, तो उसकी चिंताएँ भी खत्म हो जाती हैं। मोह और माया से बंधी थूनी (स्तंभ) के टूटने से ही व्यक्ति सच्ची शांति पा सकता है।
(ख) भाव: इस पंक्ति में कबीर ने बताया है कि ज्ञान की आँधी के बाद जो जल बुझ जाता है, अर्थात अज्ञान का अंधकार मिट जाता है, उसके बाद भक्त के जीवन में प्रेम और ईश्वर की भक्ति का प्रवाह होता है। भक्त का हृदय ईश्वर की भक्ति में भीग जाता है और वह सच्चे प्रेम की अनुभूति करता है।
रचना और अभिव्यक्ति
14. संकलित साखियाँ और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सामाजिक सरोकार संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कबीर के धार्मिक और सामाजिक विचार बहुत ही सरल और व्यावहारिक थे। वे धार्मिक आडंबरों के खिलाफ थे और सच्चे धर्म को आत्मज्ञान और सत्य की प्राप्ति मानते थे। उनका मानना था कि सच्चे धर्म का पालन करते हुए मनुष्य को समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए। उनके अनुसार, कर्म ही मनुष्य की असली पहचान है, न कि उसका कुल या जाति।
भाषा-अध्ययन
15. निम्नलिखित शब्दों के तद्भव रूप लिखिए–
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर:
(1) पखापखी – पक्ष-विपक्ष
(2) अनत – अन्यत्र
(3) जोग – योग
(4) जुगति – युक्ति
(5) बैराग – वैराग्य
(6) निरपख – निष्पक्
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 7 क्षितिज भाग- 1 हिंदी पाठ 7 – साखियाँ एवं सबद