NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 8 क्षितिज भाग- 1 हिंदी पाठ 8 – वाख
Table of Contents
🔷 व्याख्या:
(1)
रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव
जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार,
पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे,
जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे।
व्याख्या –
कवयित्री कहती हैं कि वह संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिए एक नाव चला रही हैं, लेकिन वह नाव एक कच्चे धागे से बंधी है यानी उनकी साधना और प्रयास अभी कमजोर हैं। इससे वे अत्यंत असहाय महसूस कर रही हैं।
वह ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि कब वे उनकी पुकार सुनेंगे और इस कठिन संसार सागर से उन्हें पार लगाएंगे। यह मोक्ष की प्रबल इच्छा को दर्शाता है।
जैसे कच्चे मिट्टी के बर्तन से पानी टपकता है और वह पानी संचित नहीं कर पाता, वैसे ही कवयित्री के आध्यात्मिक प्रयास अधूरे और असफल हो रहे हैं। वह स्वयं को एक अधूरी साधक के रूप में देखती हैं।
उनके हृदय में बार-बार यह तीव्र भावना उठती है कि वह अपने ‘घर’ यानी ईश्वर या आत्मा के मूल स्रोत तक पहुँचना चाहती हैं। यह आत्मा की ईश्वर से मिलने की उत्कंठा है।
(2)
खा खा कर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी,
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बन्द द्वार की।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवियत्री ने जीवन में संतुलनता की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है की केवल भोग-उपभोग में लिप्त रहने से कुछ किसी को कुछ हासिल नही होगा, वह दिन-प्रतिदिन स्वार्थी बनता जाएगा। जिस दिन उसने स्वार्थ का त्याग कर त्यागी बन गया तो वह अहंकारी बन जाएगा जिस कारण उसका विनाश हो जाएगा। अगले पंक्तियों में कवियत्री ने संतुलन पे जोर डालते हुए कहा है की न तो व्यक्ति को ज्यादा भोग करना चाहिए ना ही त्याग, दोनों को बराबर मात्रा में रखना चाहिए जिससे समभाव उत्पन्न होगा। इस कारण हमारे हृदय में उदारता आएगी और हम अपने-पराये से उठकर अपने हृदय का द्वार समस्त संसार के लिए खोलेंगे।
(3)
आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई
माँझी को दूँ क्या उतराई ।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने पश्चाताप को उजागर किया है। अपने द्वारा पमात्मा से मिलान के लिए सामान्य भक्ति मार्ग को ना अपनाकर हठयोग का सहारा लिया। अर्थात् उसने भक्ति रुपी सीढ़ी को ना चढ़कर कुण्डलिनी योग को जागृत कर परमात्मा और अपने बीच सीधे तौर पर सेतु बनाना चाहती थी । परन्तु वह अपने इस प्रयास में लगातार असफल होती रही और साथ में आयु भी बढती गयी । जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उसकी जीवन की संध्या नजदीक आ गयी थी अर्थात् उसकी मृत्यु करीब थी । जब उसने अपने जिंदगी का लेख जोखा कि तो पाया कि वह बहुत दरिद्र है और उसने अपने जीवन में कुछ सफलता नहीं पाया या कोई पुण्य कर्म नहीं किया और अब उसके पास कुछ करने का समय भी नहीं है । अब तो उसे परमात्मा से मिलान हेतु भक्ति भवसागर के पार ही जाना होगा । पार पाने के लिए परमात्मा जब उससे पार उतराई के रूप में उसके पुण्य कर्म मांगेगे तो वह ईश्वर को क्या मुँह दिखाएगी और उन्हें क्या देगी क्योंकि उसने तो अपनी पूरी जिंदगी ही हठयोग में बिता दिया । उसने अपनी जिंदगी में ना कोई पुण्य कर्म कमाया और ना ही कोई उदारता दिखाई । अब कवियित्री अपने इस अवस्था पर पूर्ण पछतावा हो रहा है पर इससे अब कोई मोल नहीं क्योकि जो समय एक बार चला जाता है वो वापिस नहीं आता । अब पछतावा के अलावा वह कुछ नहीं कर सकती।
(4)
थल थल में बसता है शिव ही
भेद न कर क्या हिन्दू मुसलमाँ,
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
यही है साहिब से पहचान ।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवियत्री ने बताया है की ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, वह सबके हृदय के अंदर मौजूद है। इसलिए हमें किसी व्यक्ति से हिन्दू-मुसलमान जानकार भेदभाव नही करना चाहिए। अगर कोई ज्ञानी तो उसे स्वंय के अंदर झांककर अपने आप को जानना चाहिए, यही ईश्वर से मिलने का एकमात्र साधन है।
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 8 क्षितिज भाग- 1 हिंदी पाठ 8 – वाख
प्रश्न-अभ्यास
1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर:
रस्सी यहाँ मनुष्य के शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है और यहाँ रस्सी कमजोर अथवा नाशवान है, अर्थात यह कब टूट जाये क्या पता ।
2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर:
कवयित्री इस सांसारिकता और मोह के बंधनों से नहीं निकल पा रही है। ऐसे में वह प्रभु कि भक्ति भी सच्चे मन से नहीं कर पा रही है। अतः उसे लगता है कि उसके द्वारा कि जा रही सारी प्रार्थना व्यर्थ हुई जा रही है। इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी व्यर्थ हो रहे हैं।
3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य है, प्रभु से मिलना। कवयित्री इन भावों के सागर को पार कर अपने प्रभु कि शरण में लीन होना चाहती है।
4. भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर:
(क) कवयित्री कहना चाहती हैं कि इस दुनिया में आकर वह दुनियादारी में उलझ कर रह गईं हैं और जब अंतिम वक्त आया और जेब टटोली तो कुछ भी हासिल न हुआ।अब उसे चिंता सता रही है कि भवसागर को पार करवाने वाले मांझी अर्थात प्रभु को उतराई के रूप में क्या देगी।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को प्रभु की प्राप्ति के मार्ग को अपनाने को कहती है। कवयित्री कहती है कि व्यक्ति को भोग विलास में पड़कर कुछ भी हासिल नहीं होता। व्यक्ति जब सांसारिक भोगों को पूर्ण रूप से छोड़ देता है तब उसके मस्तिष्क में अहंकार की भावना की उत्पत्ति होती है। अंतः भोग-त्याग, सुख-दुःख के बीच का मार्ग अपनाने को यहाँ कवयित्री कह रही है।
5. बंद द्वार कि साँकल के लिए ललध्दद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर:
बंद द्वार कि सांकल के लिए ललध्दद ने उपाय सुझाया है कि भोग-विलास और त्याग के मध्य संतुलन बनाए रखना। मानव को दुनियादारी के विषयों में ना ही अधिक खोना चाहिए और न ही अधिक दूर जाना चाहिए, उसे मध्य के मार्ग को अपनाना चाहिए।
6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर: उपर्युक्त भाव निम्न पंक्तियों में व्यक्त हुआ है:
आई सीधी राह से, गई ना सीधी राह।
सुषम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
मांझी को दूं, क्या उतराई?
7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है – जिसने आत्मा और परमात्मा के रिश्ते को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार प्रभु का निवास कण कण में है सर्वत्र है, लेकिन मानव इसे धर्म कि श्रेणियों में बांट कर मंदिर और मस्जिद में ढूंढ रहा है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने भीतर प्रभु को ढूंढ लेता है।
रचना और अभिव्यक्ति
8. हमारे संतो, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर:
(क) समाज में बसे भेदभाव के कारण निम्न हानियाँ हो रही है:
१. हिंदुओ और मुस्लिमों का झगड़ा इसी भेदभाव कि देन है, जिसके फलस्वरूप भारत और पाकिस्तान नामक दो देश बने।
२. भेदभाव की वजह से ही उच्च और निम्न वर्गों में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा।
३. त्योहारों के वक्त अनायास झगड़ों की उत्पत्ति हो जाती है।
४. आपसी भेदभाव की वजह से ही एक वर्ग दूसरे वर्ग को संदेह और अविश्वास की निगाह से देखते हैं।
५. भेदभाव की वजह से ही अलगाववाद, उग्रवाद और तनाव जैसी स्थितियों की उत्पत्ति होती है।
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:
१. आपस में भेदभाव मिटाने के लिए सर्वप्रथम उन विषयों के ऊपर वार्तालाप ही ना करें, जिससे यह भेदभाव उत्पन्न होता हो।
२. सरकार अपनी नीतियों से जातियों में होने वाले भेदभाव को बढ़ावा न दें।
३. राजनीतिक दल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक संवेदनाओं का सहारा न लें।
४. नौकरियों, शिक्षा और किसी भी अन्य सरकारी योजनाओं में आरक्षण को बढ़ावा न देकर, बल्कि योग्यता के आधार पर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
५. स्कूली शिक्षा भी एकता और क्षमता पर आधारित हो।
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 8 क्षितिज भाग- 1 हिंदी पाठ 8 – वाख